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अंगना पधारो महारानी लिरिक्स | Angana padharo maharani lyrics

अंगना पधारो महारानी लिरिक्स  | Angana padharo maharani lyrics अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी शारदा भवानी मोरी शारदा भवानी करदो कृपा महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... ऊँची पहाड़िया पे मंदिर बनो है मंदिर में मैया को आसान लगो है सान पे बैठी महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... रोगी को काया दे निर्धन को माया बांझन पे किरपा ललन घर आया मैया बड़ी वरदानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... मैहर में ढूंढी डोंगरगढ़ में ढूंढी कलकत्ता कटरा जालंधर में ढूंढी विजरघवगध में दिखानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... मैहर को देखो या विजयराघवगढ़ को एकै दिखे मोरी मैया के मढ़ को महिमा तुम्हारी नहीं जानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... मैया को भार सम्भाले रे पंडा हाथो में जिनके भवानी को झंडा झंडा पे बैठी महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... महिमा तुम्हारी भगत जो भी गाए मोनी भी मैया में दर्शन को आए करदो मधुर मोरी वाणी हो मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो महारानी  | Angana padharo maharani गीत यहाँ सुनें ...

षट्तिला एकादशी कथा | shattila Ekadashi Katha

षट्तिला एकादशी कथा Ekadashi Katha


आज माघ माह के कृष्णपक्ष की एकादशी "षट्तिला एकादशी" है।

षट्तिला एकादशी कथा:-

श्री कृष्ण भगवान् के श्रीमुख से मन को आनन्द एवं सन्तोष देने वाली एकादशियों के व्रत की उत्तम कथाएं सुनकर अर्जुन ने श्रद्धापूर्वक उन्हें नमन किया और बोले:- "हे मधुसूदन, आपके मुख से कथाएं सुनकर मुझे अपार आनन्द मिला है।

हे जगदीश्वर, कृपा कर अन्य एकादशियों की कथाएं भी सुनने का कष्ट करें।"

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:-

"हे पार्थ, अब मैं माघ मास के कृष्ण पक्ष की षट्तिला एकादशी व्रत की कथा सुनाता हूं।

एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा:-

"हे मुनीश्वर, मनुष्य मृत्युलोक में ब्रह्महत्या आदि महान् पाप करते हैं और दूसरे के धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति देकर ईर्ष्या आदि करते हैं, ऐसे सभी पाप मनुष्य क्रोध, ईर्ष्या, उत्तेजना और अज्ञानतावश करते हैं और बाद में पश्चात्ताप करते हैं कि हाय, यह मैंने क्या किया।

हे महामुनि, ऐसे प्राणियों को नरक से बचाने का क्या उपाय है?
कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे ऐसे प्राणियों को नरक प्राप्त न हो, ऐसा कोन सा दान-पुण्य है जिसके प्रभाव से नरक यातना से बचा जा सकता है, यह सब आप कृपा पूर्वक कहिए?"

इस पर पुलस्त्य महात्मा बोले:- "हे महाभाग, आपने मुझसे अत्यन्त गम्भीर प्रश्न पूछा है, इससे संसारीजनों का बहुत लाभ होगा।
जिस भेद को इन्द्र आदि देव भी नहीं जानते, वह भेद मैं आपको अवश्य ही बताऊंगा।

माघ मास आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध रहना चाहिए और इन्द्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या तथा अहंकार आदि से सर्वथा
बचना चाहिए।

जिस दिन मूल नक्षत्र और एकादशी तिथि हो, तब अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करना चाहिए।

स्नान आदि नित्य क्रिया से देवों के देव भगवान् श्री विष्णु का पूजन-कीर्तन करना चाहिए।

एकादशी के दिन व्रत करें और रात्रि को जागरण तथा हवन करें।
उसके दूसरे दिन धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान् का पूजन करें और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए।

उस दिन भगवान् को पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य देना चाहिए और फिर इस प्रकार उनकी स्तुति करनी चाहिए:-

"हे भगवन् आप निराश्रितों को शरण देने वाले हैं, आप संसार में डूबे हुए का उद्धार करने वाले हैं।

हे पुन्डरीकाक्ष, हे कमलनेत्रधारी, हे विश्व विधाता, हे सुब्रह्मण्य, आप लक्ष्मी जी सहित मेरे इस तुच्छ अर्घ्य को स्वीकार कीजिए।"

इसके पश्चात् ब्राह्मण को जल से भरा कुंभ, तिल दान करना चाहिए।
इस प्रकार मनुष्य जितने तिल दान करता है, वह उतने ही सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में निवास करता है।

१. तिलस्नान, २. तिल की उबटन, ३. तिलोदक, ४. तिल का हवन, ५. तिल का भोजन, ६. तिल का दान, इस प्रकार छः रुपों में तिलों का प्रयोग षट्तिला कहलाती है, इससे अनेक प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं।

ऐसा कहकर पुलस्त्य ऋषि बोले:- "अब मैं एकादशी की कथा कहता हूं।

एक दिन नारद ऋषि ने भगवान् से षट्तिला एकादशी के संबंध में पूछा, वे बोले:- "हे भगवन् ! आपको नमस्कार है।
षट्तिला एकाद्शी के व्रत का पुण्य क्या है, उनकी क्या कथा है, सो कृपा कर कहिए।"

नारद की विनती सुनकर श्री विष्णु भगवान् बोले:- "हे नारद, मैं तुमसे आंखों देखी सत्य घटना कहता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो:-

प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी, वह सदैव व्रत किया करती थी।
एक समय वह एक माह तक व्रत करती रही, इससे उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया।

वह अत्यन्त बुद्धिमान थी, फिर उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अन्नादि का दान नहीं किया।

मैंने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर तो शुद्ध कर लिया है और इसको विष्णु लोक भी प्राप्त हो जायेगा, परन्तु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है, अन्न के बिना प्राणी की तृप्ति होना कठिन है।

ऐसा सोचकर मैं मृत्यु लोक में गया और उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी।

वह ब्राह्मणी बोली:- हे महाराज, आप यहां किसलिए आये हैं?

मैंने कहा:- मुझे भिक्षा चाहिए।

इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया, मैं उसे लेकर स्वर्ग लौट आया।

कुछ समय बीतने पर वह ब्राह्मणी भी शरीर त्यागकर स्वर्ग आई।

मिट्टी के पिण्ड के प्रभाव से उसे उस जगह एक आम वृक्ष सहित गृह मिला, परन्तु उसने गृह को अन्य वस्तुओं से शून्य पाया।

वह घबराई हुई मेरे पास आई और बोली:- ’हे भगवन् ! मैंने अनेकों व्रत आदि से आपकी पूजा की है, परन्तु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रहित है, इसका क्या कारण है?’

मैंने कहा:- "तुम अपने गृह को जाओ और जब देव- स्त्रियां तुम्हें देखने आएं, तब तुम उनसे षट्तिला एकादशी व्रत का माहात्म्य और विधि पूछना, जब तक वह तुम्हें न बताएं, तब तक द्वार न खोलना।"

भगवान् के ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर को गई और जब देव स्त्रियां आईं और द्वार खुलवाने लगीं तब वह ब्राह्मणी बोली:- "यदि आप मुझे देखने आई हैं तो पहले षट्तिला एकादशी का माहात्म्य कहिए।"

उनमें से एक देव स्त्री बोली:- "यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो सुनो, मैं तुम्हें एकादशी व्रत और उसका माहात्म्य विधि सहित कहती हूं।"

जब उसने षट्तिला एकादशी का माहात्म्य सुना दिया, तब उस ब्राह्मणी ने द्वार खोला, देव स्त्रियों ने उसको सब स्त्रियों से अलग पाया।

उस ब्राह्मणी ने भी देव स्त्रियों के कहे अनुसार षट्तिला का व्रत किया और इसके प्रभाव से उसका गृह धनधान्य से भरपूर हो गया।

अतः हे अर्जुन, मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षट्तिला एकादशी का व्रत करना चाहिए।
इससे मनुष्यों को जन्म-जन्म की आरोग्यता प्राप्त हो जाती है, इस व्रत से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कथासार:-
इस व्रत से जहां हमें शारीरिक शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।

इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राणी जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे वैसा ही प्राप्त होता है।
अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए।

शास्त्रों में वर्णन है कि बिना दानादि के कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं माना जाता।

स्त्रोत : पूज्य जया किशोरी जी 

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