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Showing posts from January, 2023

अंगना पधारो महारानी लिरिक्स | Angana padharo maharani lyrics

अंगना पधारो महारानी लिरिक्स  | Angana padharo maharani lyrics अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी शारदा भवानी मोरी शारदा भवानी करदो कृपा महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... ऊँची पहाड़िया पे मंदिर बनो है मंदिर में मैया को आसान लगो है सान पे बैठी महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... रोगी को काया दे निर्धन को माया बांझन पे किरपा ललन घर आया मैया बड़ी वरदानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... मैहर में ढूंढी डोंगरगढ़ में ढूंढी कलकत्ता कटरा जालंधर में ढूंढी विजरघवगध में दिखानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... मैहर को देखो या विजयराघवगढ़ को एकै दिखे मोरी मैया के मढ़ को महिमा तुम्हारी नहीं जानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... मैया को भार सम्भाले रे पंडा हाथो में जिनके भवानी को झंडा झंडा पे बैठी महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो... महिमा तुम्हारी भगत जो भी गाए मोनी भी मैया में दर्शन को आए करदो मधुर मोरी वाणी हो मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी अंगना पधारो महारानी  | Angana padharo maharani गीत यहाँ सुनें ...

Vishwakarma Aarti

 Vishwakarma Aarti जय श्री विश्वकर्मा ,प्रभु जय श्री विश्वकर्मा। सकल सृष्टि के कर्ता ,रक्षक स्तुति धर्मा ॥जय..॥   आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया। जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥जय..॥   ऋषि अंगिरा तप से ,शांति नही पाई। ध्यान किया जब प्रभु का ,सकल सिद्धि पाई ॥जय..॥   रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना। संकट मोचन बनकर, दूर दु:ख कीना ॥जय..॥   जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी। सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी ॥जय..॥   एकानन चतुरानन, पंचानन राजे। द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे ॥जय..॥   ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे। मन द्विविधा मिट जावे, अटल शांति पावे ॥जय..॥   श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे। भजत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे ॥जय..॥

Dhanvantari aarti

 Dhanvantari aarti   जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा। जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय..।। तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए। देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय..।।   जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय..।।   जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया। सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय..।। भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी। आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय..।। तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे। असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय..।। हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा। वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय..।। धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे। रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय..।।

Aarti Tulsi ji ki | Tulsi aarti

 Aarti Tulsi ji ki | Tulsi aarti   जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता । सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता।। मैय्या जय तुलसी माता।।   सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर। रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता। मैय्या जय तुलसी माता।।   बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या। विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता। मैय्या जय तुलसी माता।।   हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित। पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता। मैय्या जय तुलसी माता।।   लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में। मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता। मैय्या जय तुलसी माता।।   हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी। प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता। हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता। मैय्या जय तुलसी माता।।   जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता। सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥   मैय्या जय तुलसी माता।।

Ram ji ki aarti

 Ram ji ki aarti  आरती कीजै श्री रामचन्द्र जी की। दुष्टदलन सीतापति जी की॥   पहली आरती पुष्पन की माला। काली नाग नाथ लाये गोपाला॥   दूसरी आरती देवकी नन्दन। भक्त उबारन कंस निकन्दन॥   तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे। रत्‍‌न सिंहासन सीता राम जी सोहे॥   चौथी आरती चहुं युग पूजा। देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥   पांचवीं आरती राम को भावे। राम जी का यश नाम देव जी गावें॥

Vishnu ji ki aarti

 Vishnu ji ki aarti   ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी  जय जगदीश हरे। भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ॐ..॥   जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसे मन का। सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का ॥ॐ..॥   मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी। तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी ॥ॐ..॥   तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥ पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ॐ..॥   तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ॐ..॥   तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥ॐ..॥ दीनबंधु दु:खहर्ता, तुम रक्षक मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ॐ..॥   विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ॐ..॥   तन-मन-धन, सब कुछ तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ॥ॐ..॥   श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे ॥ॐ..॥

Jai Parwati Mata Aarti

Jai Parwati Mata Aarti जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता । ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल की दाता ॥ॐ..॥   अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता । जग जननी जगदम्बा हरिहर गुण गाता ॥ॐ..॥   सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा । देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा ॥ॐ..॥   सतयुग रूपशील अति सुन्दर नाम सती कहलाता । हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता ॥ॐ..॥   शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता । सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा ॥ॐ..॥   सृष्ट‍ि रूप तू ही है जननी शिव संग रंगराता । नंदी भृंगी बीन लही सारा जग मदमाता ॥ॐ..॥   देवन अरज करत हम चित को लाता । गावत दे दे ताली मन में रंगराता ॥ॐ..॥   श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता ।  सदा सुखी नित रहता सुख संपति पाता ॥ॐ..॥

Jhulelal ji ki Aarti | Jhulelal aarti

 Jhulelal ji ki Aarti | Jhulelal aarti  ॐ जय दूलह देवा, साईं  जय दूलह देवा । पूजा कनि था प्रेमी, सिदुक रखी सेवा ॥ॐ..॥ तुहिंजे दर दे केई सजण अचनि  सवाली ।  दान वठन सभु दिलि सां कोन दिठुभ खाली ॥ॐ..॥ अंधड़नि  खे दिनव अखडियूँ  - दुखियनि  खे दारुं । पाए मन जूं मुरादूं सेवक कनि थारू ॥ॐ..॥ फल फूलमेवा सब्जिऊ पोखनि मंझि पचिन । तुहिजे महिर मयासा  अन्न बि आपर अपार थियनी ॥ॐ..॥ ज्योति जगे थी जगु में लाल तुहिंजी लाली । अमरलाल अचु मूं वटी हे विश्व संदा वाली ॥ॐ..॥ जगु जा जीव सभेई पाणिअ बिन प्यासा । जेठानंद आनंद कर, पूरन करियो आशा ॥ॐ..॥

Gayatri Mata Aarti

 Gayatri Mata Aarti आरती श्री गायत्री जी की ॥टेक॥   ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती । सो भक्ति ही पूर्ती करै जहं घी की ॥आरती..॥   मानस की शुचि थाल के ऊपर । देवी की जोति जगै, जहं नीकी ॥आरती..॥   शुद्ध मनोरथ के जहां घण्टा । बाजैं करैं पूरी आसहु ही की ॥आरती..॥   जाके समक्ष हमें तिहूँ लोक कै । गद्दी मिलै तबहूं लगै फीकी ॥आरती..॥   संकट आवैं न पास कबौ तिन्हें । सम्पदा औ सुख की बनै लीकी ॥आरती..॥   आरती प्रेम सो नेम सों करि । ध्यावहिं मूरति ब्रह्म लली की ॥आरती..॥

Jai ambe gauri | Durga ji ki aarti

Jai ambe gauri | Durga ji ki aarti  जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥टेक॥   मांग सिंदूर विराजत ,टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना ,चंद्रबदन नीको ॥जय॥   कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥   केहरि वाहन राजत ,खड्ग खप्पर धारी। सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःख हारी ॥जय॥   कानन कुण्डल शोभित ,नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर ,राजत सम ज्योति ॥जय॥   शुम्भ-निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती ॥जय॥   चण्ड मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे । मधु कैटभ दोउ मारे ,सुर भयहीन करे ॥जय॥   ब्रह्माणी, रुद्राणी ,तुम कमला रानी । आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ॥जय॥   चौंसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरू। बाजत ताल मृदंगा ,अरू बाजत डमरू ॥जय॥   तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता । भक्तन की दु:ख हर्ता, सुख सम्पति कर्ता ॥जय॥   भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी । मनवांछित फल पावत ,सेवत नर नारी ॥जय॥   कंचन थाल विराजत अगर कपूर...

Saraswati ji ki Aarti

 Saraswati ji ki Aarti  जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता। सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥ॐ..॥   चन्द्रवदनि पद्मासिनि, ध्रुति मंगलकारी। सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ॐ..॥   बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला। शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला ॥ॐ..॥   देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया। पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ॐ..॥   विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो। मोह,अज्ञान,तिमिर का, जग से नाश करो ॥ॐ..॥   धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो। ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ॐ..॥   माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे। हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे ॥ॐ..॥

Sai baba Aarti | Sai Baba Hindi aarti

Sai baba Aarti | Sai Baba Hindi Aarti   आरती श्री साई गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की ।  जाके कृपा विपुल सुखकारी ,दुःख-शोक, संकट भयहारी ॥आरती श्री..॥   शिर्डी में अवतार रचाया ,चमत्कार से तत्व दिखाया । कितने भक्त शरण में आए वे ,सुख़ शांति निरंतर पाए ॥आरती श्री..॥   भाव धरे जो मन मैं जैसा ,साई का अनुभव हो वैसा । गुरु को उदी लगावे तन को ,समाधान लाभत उस तन को ॥आरती श्री..॥   साईं नाम सदा जो गावे ,सो फल जग में साश्वत पावे गुरुवार सदा करे पूजा सेवा, उस पर कृपा करत गुरु देवा ॥आरती श्री..॥   राम ,कृष्ण,हनुमान रूप में ,दे दर्शन जानत जो मन में । विविध धरम के सेवक आते ,दर्शन कर इचित फल पाते ॥आरती श्री..॥   जय बोलो साई बाबा की ,जय बोलो अवधूत गुरु की साई की आरती जो कोई गावे घर में ,बसी सुख़ मंगल पावे ॥आरती श्री..॥

Shani Dev ki aarti | Shani aarti

Shani Dev ki aarti | Shani aarti जय जय श्री शनिदेव ,भक्तन हितकारी।  सूर्य के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥जय..॥    श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।  नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥जय..॥   क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।  मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥जय..॥   मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी। लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥जय..॥   देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।  विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय..॥

Surya Dev ki aarti | Surya Dev aarti

Surya Dev ki aarti | Surya Dev aarti  जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन ॥टेक॥   सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी। दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी ॥जय..॥   सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली। अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली ॥जय..॥   सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी। विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी ॥जय..॥   कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।  सेवत सहज हरत अति मनसिज-संतापा ॥जय..॥   नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।  वृष्टि विमोचन संतत, परहित-व्रतधारी ॥जय..॥   सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै। हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै ॥जय..॥  

Hanuman ji ki aarti

Hanuman ji ki aarti   आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके। अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई। दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए। लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई। लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे। लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे। पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े। बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे। सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे। कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई। जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।  लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई। आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

Shiv ji ki aarti

 Shiv ji ki aarti जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥ अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी । चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥ कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥ त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

Ganesh ji ki aarti

 Ganesh ji ki aarti जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी मस्तक पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा लड्डुअन का भोग लगे सन्त करे सेवा जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा

गंगा चालीसा | Ganga Chalisa

 गंगा चालीसा   ॥ दोहा॥   जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग। जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥     ॥ चौपाई ॥   जय जय जननी हरण अघ खानी। आनंद करनि गंग महारानी॥ जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल दलनि विख्याता॥ जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी॥ धवल कमल दल मम तनु साजे। लखि शत शरद चंद्र छवि लाजे॥ वाहन मकर विमल शुचि सोहै। अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥ जड़ित रत्न कंचन आभूषण। हिय मणि हर, हरणितम दूषण॥ जग पावनि त्रय ताप नसावनि। तरल तरंग तंग मन भावनि॥ जो गणपति अति पूज्य प्रधाना। तिहूं ते प्रथम गंगा स्नाना॥ ब्रह्म कमंडल वासिनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥ साठि सहस्त्र सागर सुत तारयो। गंगा सागर तीरथ धरयो॥ अगम तरंग उठ्यो मन भावन। लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥ तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट। धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥ धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढी। तारणि अमित पितु पद पिढी॥ भागीरथ तप कियो अपारा। दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥ जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जाटा महं रह्यो समाई॥ वर्ष पर्यंत गंग महारानी। रहीं शम्भू के जटा भुलानी॥     पुनि भागीरथी शंभुहिं ध्यायो।...

श्री नर्मदा चालीसा| Narmada Chalisa

श्री नर्मदा चालीसा     ॥ दोहा॥   देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।   चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥   इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।   तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥   ॥ चौपाई ॥ जय-जय-जय नर्मदा भवानी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।  अमरकण्ठ से निकली माता, सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।   कन्या रूप सकल गुण खानी, जब प्रकटीं नर्मदा भवानी। सप्तमी सुर्य मकर रविवारा, अश्वनि माघ मास अवतारा।   वाहन मकर आपको साजैं, कमल पुष्प पर आप विराजैं।   ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं, तब ही मनवांछित फल पावैं।   दर्शन करत पाप कटि जाते, कोटि भक्त गण नित्य नहाते।   जो नर तुमको नित ही ध्यावै, वह नर रुद्र लोक को जावैं।   मगरमच्छा तुम में सुख पावैं, अंतिम समय परमपद पावैं।   मस्तक मुकुट सदा ही साजैं, पांव पैंजनी नित ही राजैं।   कल-कल ध्वनि करती हो माता, पाप ताप हरती हो माता।   पूरब से पश्चिम की ओरा, बहतीं माता नाचत मोरा।   शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं, सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं।   शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं, सक...

भैरव चालीसा | Bhairav Chalisa

भैरव चालीसा  ||दोहा|| श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ। चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥ श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल। श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥ जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी-कुतवाला॥ जयति बटुक-भैरव भय हारी। जयति काल-भैरव बलकारी॥ जयति नाथ-भैरव विख्याता। जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥ भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥ भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। सब विधि होय कामना पूरी॥ शेष महेश आदि गुण गायो। काशी- कोतवाल कहलायो॥ जटा जूट शिर चंद्र विराजत। बाला मुकुट बिजायठ साजत॥ कटि करधनी घुंघरू बाजत। दर्शन करत सकल भय भाजत॥ जीवन दान दास को दीन्ह्यो। कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥ वसि रसना बनि सारद- काली। दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥ धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरंजन खल दल भंजन॥ कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा। कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥ जो भैरव निर्भय गुण गावत। अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥ रूप विशाल कठिन दुख मोचन। क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥ अगणित भूत प्रेत संग डोलत। बम बम बम शिव बम बम बोलत॥ रुद्रकाय काली के लाला। महा कालहू के हो काला॥ बटुक नाथ हो...

संतोषी माता चालीसा | Santoshi Mata Chalisa

संतोषी माता चालीसा   ॥ दोहा ॥ बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार । ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥ भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम । कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥   ॥ चौपाई ॥ जय सन्तोषी मात अनूपम। शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥१॥   सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। वेश मनोहर ललित अनुपा ॥२॥   श्‍वेताम्बर रूप मनहारी। माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥३॥   दिव्य स्वरूपा आयत लोचन। दर्शन से हो संकट मोचन ॥४॥   जय गणेश की सुता भवानी। रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥५॥ अगम अगोचर तुम्हरी माया। सब पर करो कृपा की छाया ॥६॥   नाम अनेक तुम्हारे माता। अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता ॥७॥   तुमने रूप अनेकों धारे। को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥८॥   धाम अनेक कहाँ तक कहिये। सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥९॥   विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी। कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥१०॥   कलकत्ते में तू ही काली। दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥११॥   सम्बल पुर बहुचरा कहाती। भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥१२॥   ज्वाला जी में ज्वाला देवी। पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥१३॥...

विश्वकर्मा चालीसा | Vishwakarma Chalisa

 विश्वकर्मा चालीसा  ।। दोहा ।। श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं, चरणकमल धरिध्यान। श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान।। जय श्री विश्वकर्म भगवाना। जय विश्वेश्वर कृपा निधाना।। शिल्पाचार्य परम उपकारी। भुवना-पुत्र नाम छविकारी।। अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर। शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर।। अद्‍भुत सकल सृष्टि के कर्ता। सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता।। अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं। कोई विश्व मंह जानत नाही।। विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा। अद्‍भुत वरण विराज सुवेशा।। एकानन पंचानन राजे। द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे।। चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे। वारि कमण्डल वर कर लीन्हे।। शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा। सोहत सूत्र माप अनुरूपा।। धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे। नौवें हाथ कमल मन मोहे ।। दसवां हस्त बरद जग हेतु। अति भव सिंधु मांहि वर सेतु।। सूरज तेज हरण तुम कियऊ। अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ।। चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका। दण्ड पालकी शस्त्र अनेका।। विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं। अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं।। इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा। तुम सबकी पूरण की आशा।। भांति-भांति के अस्त्र रचाए। सतपथ को प्रभु सदा बच...

श्री धन्वंतरी चालीसा | Dhanvantari Chalisa

 श्री धन्वंतरी चालीसा  ॥ दोहा ॥ करूं वंदना गुरू चरण रज, ह्रदय राखी श्री राम। मातृ पितृ चरण नमन करूँ, प्रभु कीर्ति करूँ बखान ॥१॥ तव कीर्ति आदि अनंत है , विष्णुअवतार भिषक महान। हृदय में आकर विराजिए,जय धन्वंतरि भगवान ॥२॥ ॥ चौपाई ॥ जय धनवंतरि जय रोगारी। सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी ॥१॥ तुम्हारी महिमा सब जन गावें। सकल साधुजन हिय हरषावे ॥२॥ शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना। तुम्हरी कृपा से सब जग जाना ॥३॥ कथा अनोखी सुनी प्रकाशा। वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा ॥४॥ कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा। दीन्हा सब देवन को श्रापा ॥५॥ श्री हीन भये सब तबहि। दर दर भटके हुए दरिद्र हि ॥६॥ सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका। ब्रह्म विलोकत भयेहुँ अशोका ॥७॥ परम पिता ने युक्ति विचारी। सकल समीप गए त्रिपुरारी ॥८॥ उमापति संग सकल पधारे। रमा पति के चरण पखारे ॥९॥ आपकी माया आप ही जाने। सकल बद्धकर खड़े पयाने ॥१०॥ इक उपाय है आप हि बोले। सकल औषध सिंधु में घोंले ॥११॥ क्षीर सिंधु में औषध डारी। तनिक हंसे प्रभु लीला धारी ॥१२॥ मंदराचल की मथानी बनाई।दानवो से अगुवाई कराई ॥१३॥ देव जनो को पीछे लगाया। तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया...